स्त्री- अस्मिता और स्त्री-विमर्श
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Abstract
स्त्री-विमर्श एक आधुनिक मानवीय विमर्श है जो स्त्री और पुरुष के समान अधिकार समान-सम्मान एवं समान मानवीय भाव-भूमि के सैद्धांतिकी पर प्रतिष्ठित है। यह नारी के आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक एवं वैयक्तिक विकास को समग्रधारा से संबंधित विमर्श है। ‘स्त्री विमर्श’ का मुद्दा व्यवस्था परिवर्तन का मुद्दा है, जिसके मूल में स्त्री की अस्मिता एवं पहचान का संदर्भ निहित है। स्त्री-विमर्श व्यवस्था की प्रत्येक शाखा से संबंधित है। यह विमर्श मानवता के आधे हिस्से से संबंधित है। यह एक जाति, एक धर्म, एक क्षेत्र, एक राष्ट्र, एक समाज की स्त्रियों का विमर्श न होकर जाति, धर्म, क्षेत्र, राष्ट्र समाज आदि इन सबका अतिक्रमण करते हुए आधी दुनिया के संघर्षरत स्त्रियों का विमर्श है, जिसकी अस्मिता और पहचान, शक्ति और ऊर्जा को हजारों वर्षांे के वैषम्यमूलक इतिहास ने कुचला है, रौंदा है। अब पुनर्जागृत होना चाहती है। वह अपनी पीठ से इतिहास को धूल-मिट्टी झाड़कर समग्र अस्मिता के साथ अपने व्यक्तित्व एवं अस्तित्व के प्रकाशन हेतु प्रतिक्षण प्रतिबद्ध है। वह इतिहास से टकराती है। वर्तमान में संघर्ष करती है और अपने लिए एक नये ढंग का इतिहास भी रचना चाहती है। वह जेंडर, वर्ग, जाति, पितृसत्ता सभी से मुठभेड़ करते हुए उसमें आने वाले परिवर्तनांे और परिवर्तनों की प्रक्रियाओं से जोड़कर देखती है। निरपेक्ष रूप अथवा एकांगी आयाम तक स्वयं को सीमित न रखकर बहुआयामी संघर्ष के सत्य को स्वीकार कर सदियों से चली आ रही दासता, शोषण, उत्पीड़न की बेड़ियों को तोड़कर पितृसत्तात्मक अराजक एक अमानवीय व्यवस्था को तोड़ने के लिए कटिबद्ध विमर्श है। जीवन की सार्थकता को मानवीय धरातल पर निजी अस्तित्व के संदर्भ मंे उपलब्ध करने का मानवीय विमर्श है। प्रकारांतर से आधुनिक युग में स्त्री का यह विद्रोह हजारों वर्षों की अमानवीय सामाजिक आधार एवं अधिरचना से है। जो पितृसत्तात्मक मूल्यों की दुबारा समीक्षा की मांग करता है।1 नारी विमर्श समकालीन भारतीय जीवन का एक लोकप्रिय विमर्श है। यह नारी की अस्मिता एवं पहचान का विमर्श है। यह स्त्री-जीवन के समस्त सरोकार एवं व्यवस्था के रूपान्तरण का विमर्श है। यह अनपूछे हुए सवालों और सुलगते हुए सवालों का विमर्श है। क्योंकि पितृसत्तात्क समाज में स्त्री द्वारा अनाधिकार प्रश्न पूछने की उदंडता और परिणामस्वरूप सिर कलम करने की खुलेआम धमकी के बीच अपनी दहलीज से बाहर निकलने एवं समग्र अभिव्यक्ति का विमर्श है, समग्र अधिकार और समग्र सम्मान का विमर्श है-
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