Stri Chetna: From Swanbhuti to Sahanubhuti–The Evolution of Women's Consciousness
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Abstract
सत्य क्या है? चते ना क्या है? सत्य स्त्रीलिंग है अथवा पुलिंग या उभयलिंग? चते ना स्त्री की है? चते ना पुरुष की है? अथचा
चते ना मनुष्य मात्र की (मानवीय) है? सत्य भक्ति का होता है? सत्य रचयिता का हाते ा है? सत्य पाठक का होता है? सत्य
सार्वभौम होता है अथवा सत्य विशिष्ट होता है? या सत्य इनमंे स े केाई भी नही ं होता है? या सत्य समन्वित निर्मिति है। ऐस े
अनगिनत प्रश्नांे की वर्षा होन े लगती है जब हम सत्य का े खंगालना शुरू करते है ं और सत्य का े खंगालाना भी जरूरी है,
क्योंिक इसी स े जुड़ा है अनुभूति का सत्य। अपनी अनुभूति (स्वानुभूित) सत्य है अथवा अनुभूति-सामर्थ्य के सहारे दूसर े की
अनुभूति तक पहुंचकर सत्य का साक्षात्कार करना यानी सह-अनुभूति, समान अनुभूति के सत्य का े उपलब्ध करना सत्य है। दूसरे
शब्दों में क्या सह सह-अनुभूति (सहानुभूति) सत्य है? ये इतने सार े सवाल क्यों? तो उत्तर यह है कि सत्य की उपलब्धि का दावा
सभी करते है ं और प्रत्येक दावा करने वाला अपने सत्य का े परम-सत्य और अन्तिम-सत्य मानने लगता है, परम ब्रह्म की तरह।
और फिर इस परमब्रह्म का परमज्ञानी दूसर े के सत्य का े अंतिम सत्य भी नहीं मानता। तो फिर निर्णय कैस े हो? झगड़ा और
विवाद की जड़ यही यहै कि मेरा सत्य और तेरा सत्य, मेरी अनुभूति और तेरी अनुभूति, स्वानुभूित और सहानुभूति, रचनाकार और
भाक्े ता का सत्य, स्त्री लख्े ाक का सत्य और लेखक का सत्य।
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